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कविता

वसंत

मणि मोहन


उसके हाथों छनते-बिनते
राई के कुछ दाने
आखिर लुढ़क ही जाते हैं
इधर-उधर
और उग आते हैं...

हर बार
घर के आँगन में
कुछ इस तरह
आ ही जाता है
वसंत।
 


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